Dhadak 2 Movie Review : Blavido Ent.

Dhadak 2 Review

Dhadak 2 एक ऐसी फिल्म है जो न सिर्फ़ एक प्रेम कहानी को आगे बढ़ाती है बल्कि समाज के सबसे ज्वलंत मुद्दों में से एक — जातिवाद — को सामने लाती है। निर्देशक शाज़िया इक़बाल ने इस फिल्म को न सिर्फ़ Dhadak के सीक्वल के रूप में पेश किया है, बल्कि इसे एक नई गहराई और संवेदनशीलता भी दी है। फिल्म तमिल क्लासिक परियेरुम पेरुमाल से प्रेरित है, लेकिन यहाँ की भाषा, किरदार और भावनाओं में भारतीय समाज की जमीनी सच्चाई झलकती है।

फिल्म की कहानी निलेश (सिद्धांत चतुर्वेदी) और विधि (त्रिप्ती डिमरी) के इर्द-गिर्द घूमती है। निलेश एक साधारण परिवार से आने वाला दलित वर्ग का छात्र है, जो कानून की पढ़ाई कर रहा है। वहीं विधि एक ऊँची जाति के सम्पन्न परिवार की लड़की है। दोनों की मुलाकात कॉलेज में होती है और धीरे-धीरे दोस्ती प्यार में बदल जाती है। लेकिन जैसे ही यह रिश्ता आगे बढ़ता है, विधि का परिवार और समाज उनके खिलाफ खड़ा हो जाता है।


Dhadak 2 कहानी और सामाजिक सच्चाई

फिल्म की शुरुआत ही एक भयावह दृश्य से होती है जहाँ ऊँची जाति के लोग अपनी “इज़्ज़त” बचाने के नाम पर एक युवक की निर्मम हत्या कर देते हैं। यह दृश्य दर्शकों को तुरंत यह एहसास करा देता है कि कहानी सिर्फ़ एक प्रेम कहानी नहीं है बल्कि एक बड़े सामाजिक मुद्दे की ओर इशारा करती है।

निलेश का संघर्ष कई स्तरों पर दिखाया गया है। एक ओर वह अपने सपनों को लेकर संघर्ष कर रहा है, दूसरी ओर समाज का जातिगत भेदभाव उसे लगातार चोट पहुँचाता है। कॉलेज में साथी छात्र उसका मज़ाक उड़ाते हैं, उसकी अंग्रेज़ी पर तंज कसते हैं, और यहाँ तक कि एक प्रोफेसर भी उसे “फ्री सीट” का ताना मारकर क्लास से बाहर निकाल देता है। निलेश खुद कहता है – “फ्री की बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है।”

फिल्म में कई मार्मिक पल आते हैं जो जातिवाद की गहरी चोट को दर्शाते हैं। विधि का पिता (हरीश खन्ना) जब अपनी बड़ी बेटी की शादी का कार्ड बनवाता है तो उसमें निलेश का उपनाम जानबूझकर हटा देता है, ताकि उसकी जाति सामने न आए। एक और सीन में निलेश को उसके सहपाठी कीचड़ में धकेल देते हैं। ये दृश्य दिल दहला देने वाले हैं और सोचने पर मजबूर करते हैं।


Dhadak 2 प्रेम कहानी और कमजोरियाँ

जहाँ फिल्म समाज की कड़वी सच्चाई को बखूबी दिखाती है, वहीं निलेश और विधि की प्रेम कहानी कुछ जगहों पर अधूरी और कमजोर लगती है। दोनों के बीच chemistry है, लेकिन रोमांस की परत उतनी गहराई से नहीं उभर पाती जितनी दर्शक उम्मीद करते हैं।

लेखक (शाज़िया इक़बाल और राहुल बडवेलकर) ने फिल्म को मुख्यतः जातिगत भेदभाव और सामाजिक अन्याय पर केंद्रित किया है, जिससे प्रेम कहानी थोड़ा पीछे छूट जाती है। हालांकि, यह भी सच है कि फिल्म का मकसद सिर्फ़ एक रोमांटिक ड्रामा नहीं बल्कि एक सामाजिक सिनेमा बनाना था।


Dhadak 2 पटकथा और निर्देशन

शाज़िया इक़बाल का निर्देशन सधी हुई है। उन्होंने समाज की परत दर परत सच्चाई को दिखाने की कोशिश की है। कई दृश्यों में उन्होंने प्रतीकात्मकता (symbolism) का इस्तेमाल किया है। उदाहरण के तौर पर, डीन (जाकिर हुसैन) का किरदार जो खुद निचली जाति से है, बताता है कि कैसे बचपन में उसे पढ़ाई से रोका गया था, लेकिन आज वही लोग अपने बच्चों का दाख़िला कराने के लिए उसके पास आते हैं।

हालांकि फिल्म की गति (pacing) कुछ जगह धीमी पड़ जाती है। खासकर दूसरा भाग थोड़ा लंबा खिंचता है और climax अचानक सा महसूस होता है। दर्शकों को लगता है कि कहानी चरम पर पहुँच रही है, लेकिन समाधान बहुत जल्दबाज़ी में कर दिया गया।


Dhadak 2 संगीत और तकनीकी पक्ष

फिल्म का संगीत इसकी आत्मा है। सिद्धार्थ–गरिमा का “दुनिया अलग” और जावेद–मोहसिन का “बस एक धड़क” फिल्म को भावनात्मक गहराई देते हैं। गाने सिर्फ़ fillers नहीं हैं, बल्कि कहानी को आगे बढ़ाते हैं।

कैमरा वर्क भी उल्लेखनीय है। कॉलेज कैंपस, गाँव के दृश्य और courtroom sequences बहुत ही वास्तविक लगते हैं। सिनेमाटोग्राफी दर्शकों को कहानी में डूबने पर मजबूर करती है।


Dhadak 2 अभिनय

सिद्धांत चतुर्वेदी ने इस फिल्म में करियर का अब तक का सबसे दमदार अभिनय दिया है। उन्होंने निलेश के किरदार में मासूमियत, गुस्सा और आत्मविश्वास तीनों ही भावनाओं को बखूबी उतारा है। फिल्म के अंत तक वह एक डरे-सहमे लड़के से आत्मनिर्भर और दृढ़ इंसान में बदल जाते हैं।

त्रिप्ती डिमरी विधि के किरदार में बेहद नैचुरल लगी हैं। उनका innocence और भावनाओं से भरा अभिनय दर्शकों को प्रभावित करता है। वह सिर्फ़ एक सपोर्टिंग प्रेमिका नहीं बल्कि निलेश की ताकत बनकर सामने आती हैं।

विपिन शर्मा, जो निलेश के पिता बने हैं, कम स्क्रीन टाइम के बावजूद गहरी छाप छोड़ते हैं। जाकिर हुसैन और हरीश खन्ना जैसे कलाकारों ने भी अपने किरदारों को पूरी ईमानदारी से निभाया है।


Dhadak 2 फिल्म का प्रभाव और संदेश

Dhadak 2 केवल एक फिल्म नहीं बल्कि समाज के लिए एक आईना है। यह दर्शाती है कि कैसे 21वीं सदी में भी जातिवाद हमारे बीच जीवित है। फिल्म सवाल उठाती है – क्या प्रेम, समानता और इंसानियत से बड़ी भी कोई इज़्ज़त हो सकती है?

फिल्म में कई ऐसे डायलॉग हैं जो सीधे दिल पर असर करते हैं। खासतौर पर निलेश का संवाद – “इंसाफ़ का रास्ता लंबा है, लेकिन यह रास्ता तय करना ही पड़ेगा।”


कमज़ोरियाँ

  1. फिल्म का रोमांटिक एंगल थोड़ा अधूरा लगता है।
  2. दूसरा हाफ लंबा खिंचता है और climax जल्दबाज़ी में खत्म होता है।
  3. कुछ दृश्य थोड़े repetitive हो जाते हैं जहाँ बार-बार oppression ही दिखाया गया है।

Dhadak 2 फिल्म क्यों देखें?

  • सिद्धांत चतुर्वेदी का शानदार अभिनय।
  • सामाजिक मुद्दे को बेहद संवेदनशील तरीके से उठाया गया है।
  • संगीत और सिनेमाटोग्राफी दिल को छू लेने वाले हैं।
  • त्रिप्ती डिमरी की नैचुरल परफॉर्मेंस।

निष्कर्ष

Dhadak 2 एक मार्मिक और सशक्त फिल्म है जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर देती है। यह न सिर्फ़ एक प्रेम कहानी है बल्कि जातिवाद जैसे गहरे जख्म पर चोट करती है। सिद्धांत चतुर्वेदी और त्रिप्ती डिमरी की जोड़ी इसे और भी खास बना देती है।

हालांकि फिल्म की कुछ कमज़ोरियाँ हैं — जैसे धीमी गति और कमजोर climax — लेकिन इसकी सामाजिक प्रासंगिकता और दमदार अभिनय इसे देखने लायक बनाते हैं। यह फिल्म उन दर्शकों के लिए ज़रूर है जो केवल मनोरंजन ही नहीं बल्कि समाज की हकीकत को भी परदे पर देखना चाहते हैं।


अंतिम पंक्ति (मेरा स्टाइल):
यह VR Panghal का निजी रिव्यू है। हर दर्शक का नजरिया अलग हो सकता है। कृपया हमें इस पर हेट न दें। धन्यवाद। इस फिल्म का ट्रेलर Zee Studios चैनल पर उपलब्ध है।

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